स्वामी विवेकानंद एवं रामकृष्ण मिशन
स्वामी विवेकानंद एवं रामकृष्ण मिशन
• रामकृष्ण मिशन 19 वीं सदी का अंतिम महान धार्मिक एवं सांस्कृतिक आंदोलन था। इसकी विशेषता यह रही कि इसके द्वारा प्राचीन एवं आधुनिक दोनों ही संस्कृतियों को सम्मिश्रित किया गया।
• रामकृष्ण मिशन की स्थापना स्वामी विवेकानंद ने अपने गुरू रामकृष्ण परमहंस के नाम पर 1897 ई. में किया। यह मिशन ईसाई मिशनरियों की संस्थाओं पर आधारित था, जिसका मुख्य कार्य संकट और विपत्ति के समय चिकित्सा एवं अन्य प्रकार की सुविधाएँ प्रदान करना था।
• रामकृष्ण परमहंस (गदाधर चटोपाध्याय) का जन्म बंगाल के हुगली जिले के कमार प्रकुर नामक गाँव में एक निर्धन ब्राह्मण परिवार में 1836 ई. में हुआ था। वे कलकत्ता के दक्षिणेश्वर काली मंदिर के पुजारी थे। उन्होंने भैरवी नामक एक संन्यासिन से तांत्रिक साधना सीखी। इसके उपरांत तोतापुरी नामक एक साधु से वेदांत की शिक्षा ली। उनका मानना था कि सभी धर्मों का सार एक है और मानव की सेवा ही ईश्वर की सेवा है। महात्मा गाँधी ने भी श्रीरामकृष्ण के बारे में कहा था कि ‘ रामकृष्ण परमहंस के जीवन की कहानी व्यवहारिक धर्म है। उनका जीवन ईश्वर को हमारे सामने दिखाता है। ‘
• इनके अनुयायी : - केशवचन्द्र सेन, देवेन्द्रनाथ टैगोर, बंकिमचंद्र चटर्जी, ईश्वरचंद्र विद्यासागर, शिवनाथ शास्त्री, रामचन्द्र दत्त, गिरीशचन्द्र घोष, देवेन्द्रनाथ मजूमदार। उनके अनुयायियों में सबसे प्रिय नरेन्द्रनाथ दत्त (स्वामी विवेकानंद) थे।
• 16 अगस्त 1886 ई. में रामकृष्ण की मृत्यु हो गयी। उनकी मृत्यु के बाद उनके विचारों को संसार में फैलाने का कार्य उनके शिष्य विवेकानन्द ने किया।
• स्वामी विवेकानंद के बचपन का नाम नरेन्द्रनाथ दत्त था। उन्हें विवेकानंद का नाम खेतडी़ के महाराजा ने दिया था। उनका जन्म कलकत्ता के एक धनवान क्षत्रिय परिवार में 12 जनवरी, 1863 ई. में हुआ था। उन्होंने अंग्रेजी स्कूल में स्नातक तक की शिक्षा प्राप्त की।
• 1887 ई. में अपने गुरू के सम्मान में विवेकानन्द ने ‘वेल्लूर मठ ' की स्थापना की, जो आगे चलकर रामकृष्ण मिशन एवं मठ दोनों का मुख्यालय बना।
• सितम्बर, 1893 ई. में स्वामी विवेकानंद ने शिकागों में होने वाले पहले ‘ विश्व धर्म संसद ' में भाग लिया। यह संसद 11 सितंबर 1893 को ‘ कोलंबस हॉल ' में शुरू हुआ। इस संसद में थियोसोफिकल सोसायटी के प्रतिनिधि एनी बेसेन्ट, प्रतापचन्द्र मजूमदार और नागरकर ने भी भाग लिया।
• अमेरिकी समाचार पत्र न्यूयार्क हेरॅाल्ड में धर्म संसद में दिए उनके प्रवचनों की काफी प्रशंसा हुई। न्यूयार्क हेराल्ड ने उन्हें धार्मिक संसद का सबसे महान व्यक्ति कहा और लिखा कि ‘ उनको सुनने के पश्चात् हमें ये पता लगा कि उस विद्वान के देश में अपने धर्म प्रचारकों को भेजना कितनी मूर्खता है। ' अमेरिका समेत कई पश्चिम यूरोपीय राष्ट्रों में विवेकानंद ने इसी दौरान भारतीय धर्म एवं संस्कृति का प्रचार - प्रसार किया। वे शीघ्र ही तूफानी भ्रमण करने वाले संन्यासी के रूप में पाश्चात्य जगत में प्रसिद्ध हुये।
• विवेकानंद पहले भारतीय थे, जिन्होंने पाश्चात्य सर्वोच्चता पर प्रश्नचिहन लगाया। अपने प्रवचनों में सभी धर्मों की आधारभूत समानता पर बल देते हुए अपने धर्म को महान एवं दूसरे के धर्म को छोटा कहने की दूषित प्रवृत्ति की आलोचना की। उनका कहना था कि भारत पश्चिम को अध्यात्मवाद प्रदान कर सकता है और स्वयं पश्चिम से भौतिक प्रगति की शिक्षा प्राप्त कर सकता है।
• अमेरिका के विविध केन्द्रों में विवेकानंद द्वारा 1896 ई. में ‘ वेदांत सोसायटी ' की स्थापना की गई। अमेरिका के बाद वे इंग्लैण्ड एवं फ्रांस भी गए। इंग्लैण्ड में मार्गरेट नोबल नामक महिला उनकी शिष्या बनी, जो बाद में सिस्टर निवेदिता कहलायी। बाद में वह कलकत्ता में बस गई तथा ‘दि वे ऑफ इंडियन लाइफ’ नामक पुस्तक की रचना की।
• विवेकानंद एकेश्वरवाद पर जोर देते थे। एकेश्वरवाद के संबंध में वे इस्लाम की प्रशंसा करते हुए कहते हैं कि इस्लाम ने एकेश्वरवाद को मानने में सबको पीछे छोड़ दिया है। वे आत्मज्ञान को ही वास्तविक धर्म कहते हैं। उनका कहना था कि “मैं उस ईश्वर में विश्वास नहीं कर सकता जो यहाँ धरती पर हमें रोटी नहीं दे सके और स्वर्ग में शाश्वत सुख एवं मोक्ष का आश्वासन दे।” यद्यपि विवेकानंद वेदांतवादी विचारधारा पर बल देते रहे, किंतु उन्होंने ने मूर्ति पूजा को भी स्वीकार किया।
• विवेकानंद जाति प्रथा को विभेदकारी मानते हुए इसका उन्मूलन चाहते थे। उनका मानना था ‘मानव ईश्वर का अंश है इसलिए मानव की सेवा ही ईश्वर की सर्वोच्च सेवा है। ' उन्होंने लिखा है कि ‘एकमात्र ईश्वर जिसमें मैं विश्वास करता वह है सभी आत्माओं का योग और सबसे पहले मेरे भगवान सभी जातियों के कुष्ठ पीड़ित दरिद्र हैं। ‘ वास्तव में उनके समाजसुधार का उद्देश्य ‘ दरिद्रनारायण की सेवा ' था। उनका कहना था ‘ जब तक कि करोड़ों व्यक्ति भूखे रहते हैं, तब तक मैं हर व्यक्ति को देशद्रोही मानता हूँ, जो उन्हीं के खर्चे पर शिक्षा प्राप्त करता है और उनकी बिल्कुल परवाह नहीं करता।' जाति प्रथा का विरोध करते हुए उन्होंने एकबार कहा ‘हमारा धर्म रसोई तक सीमित हो गया , हमारा ईश्वर खाना पकाने की हांडी में बस गया और हमारे धर्म का सार बन गया है – मुझे स्पर्श न करो, मैं पवित्र हूँ’।
• उनका मानना था कि जिस प्रकार वह शरीर जिसकी समस्त शिराओं में रक्त का समुचित प्रवाह नहीं होता वह रोगग्रस्त हो जाता है, उसी प्रकार वह समाज भी रूग्ण हो जाता है जिसका एक बड़ा भाग पिछड़ा हुआ अथवा शिक्षा या बुनियादी सुविधाओं से वंचित है।
• विवेकानंद फ्रांस मिस्र, वियना, कुस्तुनतुनिया एवं एथेंस होते हुए स्वदेश पहुँचे।यहाँ उन्होंने दो मठों की स्थापना की - बेलूर (कलकत्ता के समीप), मायावती (अलमोड़ा, उत्तरांचल)। मायावती मे उनके प्रसिद्ध शिष्य मिस्टर सेवियर रहते थे।
• 1900 ई. में पेरिस में होने वाले दूसरे विश्व धर्म सम्मेलन में भी सम्मिलित हुए, जहाँ वे प्रसिद्ध फ्रांसिसी दार्शनिक जुलियस वाइस से मिले।
• विवेकानंद ने भारत में अनेक पत्र भी प्रकाशित किए, जिनमें प्रमुख हैं - अंग्रेजी में ब्रह्मवादी (मद्रास से), प्रबुद्ध भारत (मायावती से) तथा बंगाली में ' उद्बोधन ' तथा ' प्रबोधिनी ' (कलकत्ता से)। इसके अतिरिक्त लेटर्स फ्रॉम कोलम्बो टू अलमोडा, धर्मयोग, कर्मयोग और ज्ञानयोग उनकी प्रमुख कृति है।
• 4 जुलाई 1902 ई. को उनकी मृत्यु हो गई। इस समय तक रामकृष्ण मिशन के पाँच मठ स्थापित हो चुके थे
• बेलूर, मायावती, काशी, प्रयाग, बैंगलोर। उनके द्वारा मिशन की शाखाएँ न्यूयार्क, बोस्टन, वाशिंग्टन, पिट्सवर्ग, सैनफ्रांसिस्को में स्थापित किए गए।
• सुभाषचंद्र बोस ने विवेकानंद को ‘ बंगाल के राष्ट्रीय जागरण का आध्यात्मिक पिता ‘ कहा है।