प्रधानमंत्री | Indian Polity Exam Notes

 प्रधानमंत्री

भारत में संसदीय व्यवस्था को ब्रिटिश मॉडल से अपनाया गया है। प्रधानमंत्री तथा उसके मंत्रिपरिषद् को वास्तविक कार्यपालिका कहा जाता है। प्रधानमंत्री को अपने मंत्रिपरिषद् के चयन का अधिकार प्रदान किया गया है। प्रधानमंत्री तथा उसकी मंत्रिपरिषद् संसद के प्रति उत्तरदायी होते हैं तथा सभी संसद के भी सदस्य होते हैं। उपर्युक्त व्यवस्था में मंत्रिपरिषद् महत्वपूर्ण है, लेकिन उसमें भी सबसे महत्वपूर्ण हैं-प्रधानमंत्री, इस व्यवस्था में प्रधानमंत्री को 'समान व्यक्तियों में प्रथम' कहा है।

डॉ. अंबेडकर के अनुसार, 'यदि हमारे संविधान में किसी शासन अधिकारी की तुलना अमेरिका के अध्यक्ष से की जा सकती है, तो वह है, प्रधानमंत्री, न कि राष्ट्रपति। वास्तव में प्रधानमंत्री संपूर्ण तंत्र की धुरी है। प्रधानमंत्री, राज्य रूपी जहाज का चालक है और समकक्षों में प्रथम हैं। संसदीय लोकतांत्रिक देशों में दो प्रकार की कार्यपालिका पाई जाती है-संवैधानिक कार्यपालिका और वास्तविक कार्यपालिका।

भारत में राज्याध्यक्ष (राष्ट्रपति) प्रतिष्ठित व सम्मानित व्यक्ति हैं, जबकि शासनाध्यक्ष (प्रधानमंत्री) कुशल व वास्तविक अध्यक्ष हैं। संसदात्मक लोकतंत्र में वस्तुतः प्रधानमंत्री की स्थिति सर्वोच्च अधिकारी की होती है। प्रधानमंत्री, राष्ट्र का लोकप्रिय नेता है। वह मंत्रिपरिषद् रूपी नाव का चालक होता है। भारत के प्रधानमंत्री के संबंध में उक्त कथन सत्य है। संविधान के अनुच्छेद-74 के अनुसार, 'एक मंत्रिपरिषद् होगी, जिसका अध्यक्ष प्रधानमंत्री होगा, वह मंत्रिपरिषद् की सहायता से राष्ट्रपति को उसके कार्य़ों में सहायता तथा सलाह देगी।

प्रधानमंत्री की नियुक्ति-

आम चुनाव के बाद राष्ट्रपति, लोक सभा के बहुमत प्राप्त दल के नेता को सरकार बनाने के लिए निमंत्रण देता है और उसे प्रधानमंत्री नियुक्त करता है। यदि लोक सभा में किसी दल का स्पष्ट बहुमत नहीं है, तो राष्ट्रपति अपने विवेक से प्रधानमंत्री को नियुक्त कर सकता है, राष्ट्रपति अपने स्वविवेक का इस्तेमाल करके ऐसे व्यक्ति को प्रधानमंत्री नियुक्त करेगा, जो कि लोक सभा में बहुमत का विश्वास प्राप्त करने की क्षमता रखता हो। विशेष परिस्थितियों में राष्ट्रपति स्वविवेक का प्रयोग करके उचित प्रधानमंत्री चुन सकता है, जैसे-

(i) यदि लोक सभा में किसी दल का स्पष्ट बहुमत न, हो।

(ii) यदि बहुमत दल का कोई सर्वमान्य नेता न हो, या नेता के पद के कई दावेदार हों।

(iii) राष्ट्रीय संकट के दौरान लोक सभा को भंग करके कुछ समय के लिए कार्यवाहक सरकार का नेता मनोनीत कर सकता है।

प्रधानमंत्री के पद और गोपनीयता की शपथ-

संविधान के तीसरी अनुसूची में संघीय मंत्रियों के शपथ और गोपनीयता का प्रावधान है। अतः तीसरी अनुसूची में प्रधानमंत्री के लिए अलग से शपथ का प्रावधान नहीं है, बल्कि मंत्रियों की पद की शपथ और गोपनीयता का प्रावधान प्रधानमंत्री के लिए भी लागू होता है। प्रधानमंत्री के द्वारा संविधान के प्रति पूर्ण आस्था और निष्ठा की शपथ ली जाती है। प्रधानमंत्री भारत की संप्रभुता और अखण्डता को बनाए रखने की शपथ लेता है। मंत्री के रूप में अपने कर्त्तव्यों को आस्था और पूर्ण निष्ठा से संपादित करने की शपथ लेता है। प्रधानमंत्री के द्वारा यह भी शपथ लिया जाता है, कि वे सभी लोगों के साथ संविधान और विधि के अनुसार उचित व्यवहार करेगा और बिना किसी भय, असद्भावना, लगाव अथवा पक्षपात के अनुसार कार्य करेगा।

इसके अतिरिक्त प्रधानमंत्री के लिए गोपनीयता की शपथ का भी प्रावधान है। प्रधानमंत्री के द्वारा यह कहा जाता है, कि उसके समक्ष लायी गयी किसी जानकारी को प्रत्यक्ष अथवा परोक्ष रूप में किसी को संप्रेषित नहीं करेगा और किसी व्यक्ति अथवा व्यक्ति समूह को इसकी जानकारी नहीं देगा। प्रधानमंत्री के कर्त्तव्यों और कार्य़ों के संपादन के दौरान यदि आवश्यक हो, तो वह कोई सूचना किसी को संप्रेषित कर सकता है। पूर्व प्रधानमंत्री डॉ. मनमोहन सिंह के ऊपर गोपनीयता को भंग करने का आरोप लगाया गया। आलोचकों ने कहा, कि डॉ. मनमोहन सिंह के द्वारा प्रधानमंत्री कार्यालय की महत्वपूर्ण और गोपनीय सूचनाओं को कांग्रेस की अध्यक्षा सोनिया गाँधी को संप्रेषित किया। यद्यपि प्रधानमंत्री के द्वारा इसका खण्डन किया गया।

प्रधानमंत्री के कार्य और उसकी शक्तियाँ-

(i) समकक्षों में प्रथम-

भारतीय संविधान के अनुच्छेद-75(1) के अनुसार, मंत्रियों की नियुक्ति का अधिकार राष्ट्रपति को है। ये नियुक्तियाँ प्रधानमंत्री की सलाह से ही राष्ट्रपति करता है, परंतु मंत्रिमंडल के निर्माण में राष्ट्रपति की केवल औपचारिक भूमिका होती है, क्योंकि मंत्रियों का चयन प्रधानमंत्री द्वारा किया जाता है। राष्ट्रपति, प्रधानमंत्री से यह नहीं कह सकता है, कि अमुक व्यक्ति को मंत्रिपरिषद् में नहीं लिया जाएगा। यद्यपि प्रधानमंत्री स्वेच्छा से राष्ट्रपति की राय को स्वीकार कर सकता है। कोई मंत्री उस समय तक ही अपने पद पर रह सकता है, जब तक कि उसे प्रधानमंत्री का विश्वास प्राप्त है। वह किसी भी मंत्री को त्यागपत्र देने के लिए कह सकता है। यदि कोई मंत्री उसके आदेश का पालन करने से इंकार कर दे, तो प्रधानमंत्री, राष्ट्रपति से अनुरोध कर संबंधित मंत्री को बर्खास्त करवा सकता है। किसी भी परिस्थिति में यदि प्रधानमंत्री इस्तीफा देता है, तो संपूर्ण मंत्रिमंडल स्वतः विघटित हो जाता है।

प्रधानमंत्री अपने सभी मंत्रियों के विभागों का बँटवारा भी करता है। पूर्व में प्रधानमंत्री मंत्रिपरिषद् की सदस्य संख्या निर्धारित करता था, परंतु अब यह संख्या निश्चित कर दी गई है, जो कि संसद की कुल सदस्य संख्या का 15 प्रतिशत से अधिक नहीं होना चाहिए। (91वाँ संविधान संशोधन अधिनियम, 2003) प्रधानमंत्री मंत्रिमंडल की बैठकों की अध्यक्षता करता है तथा बैठकों में विचार किए जाने वाले विषयों के कार्यक्रम तैयार करता है। यद्यपि निर्णय बहुमत से लिए जाते हैं, परंतु यहाँ उसकी स्थिति प्रभावपूर्ण व निर्णायक होती है। प्रधानमंत्री मंत्रिमंडल का निर्माण करने व संचालन करने एवं नष्ट करने का कार्य करता है।

(ii) नीति निर्माता-

प्रधानमंत्री, शासन का वास्तविक प्रधान होता है। अतः वह सभी नीतियों का निर्माता होता है। गृह, राष्ट्र और विदेश नीति के निर्माण में प्रभावशाली भूमिका होती है। प्रधानमंत्री द्वारा दिया गया वक्तव्य, नीतिगत वक्तव्य होता है।

(iii) मंत्रिपरिषद् की अध्यक्षता-

वह मंत्रिपरिषद् का अध्यक्ष सर्वसम्मति या बहुमत से चुना जाता है। वहीं मंत्रिपरिषद् की बैठकों की तिथि निश्चित करता है। उसमें पेश किए जाने वाले मसौदे तैयार करता है तथा बैठकों की अध्यक्षता करता है। सभी मंत्रीगण अपने विभागों की कार्यकुशलता के लिए व्यक्तिगत रूप से प्रधानमंत्री के प्रति उत्तरदायी होते हैं। वह उन्हें शासन कार्य में परामर्श, प्रोत्साहन व चेतावनी देता है। दो मंत्रियों या विभागों में मतभेद होने पर अपना निर्णय उन पर लागू करता है। सत्ता में वह समन्वयकर्ता की भूमिका निभाता है।

(vi) लोक सभा का नेता-

प्रधानमंत्री, लोक सभा में बहुमत दल का नेता होता है। लोक सभा के नेता के रूप में उसके तीन प्रमुख कार्य होते हैं-  

(i) वह लोक सभा अध्यक्ष से संपर्क बनाए रखता है एवं वह लोक सभा के अधिवेशन बुलाने, संपन्न कराने की अवधि प्रस्तावित करता है।

(ii) प्रधानमंत्री, सरकार के मुख्य प्रवक्ता के रूप में कार्य करता है। वह सदन में सरकार की नीति को स्पष्ट करता है और मंत्रियों के प्रश्नों का उत्तर भी देता है।

(iii) प्रधानमंत्री, विपक्षी दल से संपर्क बनाए रखता है तथा लोक सभा के नेता के रूप में सदन की समस्त कार्यवाही पर नियंत्रण रखता है एवं सरकारी नीतियों का स्पष्टीकरण करता है।

(v) मंत्रिपरिषद् और राष्ट्रपति के मध्य की कड़ी-

संविधान के द्वारा, प्रधानमंत्री को मंत्रिपरिषद् और राष्ट्रपति के मध्य एक महत्वपूर्ण कड़ी की भूमिका प्रदान की गई है। अनुच्छेद-78 के अनुसार, मंत्रिमंडल के निर्णयों से प्रधानमंत्री, राष्ट्रपति को अवगत कराता है। वह, राष्ट्रपति द्वारा माँगी गई प्रशासन से संबंधित जानकारी भी प्रदान करता है। किसी एक मंत्री द्वारा लिए गए निर्णय को राष्ट्रपति, प्रधानमंत्री के माध्यम से मंत्रिपरिषद् के सामने प्रस्तुत करवाता है।

(vi) प्रधानमंत्री और राज्यों का प्रशासन-

प्रधानमंत्री प्रत्यक्ष एवं अप्रत्यक्ष रूप से राज्यों के प्रशासन में समुचित रूप से हस्तक्षेप करता है। जैसे-राज्यों में राज्यपाल की नियुक्ति में अपनी राय देना। केंद्रीय सरकार द्वारा राज्यों के प्रशासन को दिशा निर्देश देने का अधिकार भी उसे प्राप्त है। राज्यों की वित्तीय स्थिति कमजोर होने की दशा में उनकी केंद्र पर निर्भरता बढ़ जाती है। प्रधानमंत्री, विभिन्न प्रकार के अनुदान और वित्तीय सहायता द्वारा राज्यों के प्रशासन को प्रभावित करता है। अनुच्छेद-356 के तहत राज्यों में राष्ट्रपति शासन की घोषणा के पश्चात् राज्यों का प्रशासन वास्तविक रूप से प्रधानमंत्री के हाथों में आ जाता है।

(vii) प्रधानमंत्री और आर्थिक नियोजन-

देश के सर्वांगीण विकास के लिए नेहरू के काल से ही आर्थिक नियोजन अपनाया गया है। भारत में आर्थिक नियोजन के लिये 'राष्ट्रीय विकास परिषद्' (वर्ष-1952) का गठन किया गया है। इसका अध्यक्ष प्रधानमंत्री होता है। इस प्रकार, राज्यों को प्रदान की जाने वाली आर्थिक सहायता प्रधानमंत्री के निर्देशन द्वारा तय की जाती है।

(viii) आम चुनाव व प्रधानमंत्री-

आम चुनाव में प्रधानमंत्री के व्यक्तित्व और कार्यशैली का प्रभाव शुरू से ही देखने को मिलता है तथा मतदाता भी संभावित प्रधानमंत्री को मद्देनजर रखते हुए ही किसी दल को अपना समर्थन प्रदान करते हैं। जैसे-जवाहर लाल नेहरू, इंदिरा गाँधी, राजीव गाँधी, अटल बिहारी वाजपेयी इन सबकी आम चुनावों में निर्णायक भूमिका देखने को मिली है। अतः इनके नाम से ही वोट माँगे जाते हैं।

(xi) अंतर्राष्ट्रीय क्षेत्र में देश का प्रतिनिधित्व-

विदेशों में प्रधानमंत्री के वक्तब्य को देश की नीति समझा जाता है, वह समय-समय पर देश के हितों के लिए विदेशों की यात्रा करता है और भारत सरकार के दृष्टिकोण को दूसरे देशों के सामने प्रस्तुत करता है। समय-समय पर होने वाले अंतर्राष्ट्रीय सम्मेलनों में भारत का प्रतिनिधित्व भी करता है।


(x) प्रधानमंत्री एवं गठबंधन सरकार-

वास्तविक रूप में मिली-जुली सरकार का दौर वर्ष-1977 से माना जाना चाहिए। जब मोरारजी देसाई के नेतृत्व में सरकार बनी, परंतु वर्ष-1989 से भारत में वास्तविक गठबंधन सरकारों का युग प्रारंभ हुआ। गठबंधन सरकार के दौर में प्रधानमंत्री के शक्ति और प्रभाव का हस हुआ। वर्ष-1989 से लेकर वर्ष-2013 तक संघ में गठबंधन सरकारों का निर्माण हुआ।  किसी भी एक दल को लोक सभा में स्पष्ट बहुमत प्राप्त नहीं हो सका, जिसके कारण प्रधानमंत्री अनेक दलों के सहयोग के आधार पर निर्मित हुआ। वर्ष-1991 में चन्द्र शेखर जब प्रधानमंत्री बने थे, उनके दल में केवल 54 सांसद थे और कांग्रेस दल के द्वारा उन्हें बाहर से समर्थन दिया गया था। वर्ष-1996 में प्रधानमंत्री देवीगौड़ा कांग्रेस के बाहरी समर्थन पर निर्भर थी। वर्ष-1998 के बाद अटल बिहारी वाजपेयी प्रधानमंत्री बने, जो अनेक दलों के समर्थन पर सत्ता में बने हुए थे। वर्ष-2004 से लेकर वर्ष-2013 तक डॉ. मनमोहन सिंह प्रधानमंत्री पद पर बने रहने के लिए अनेक दलों की समर्थन पर निर्भर थे। यदि प्रधानमंत्री राजनीतिक रूप में कमजोर हैं, तो वह संवैधानिक रूप में शक्तिशाली नहीं हो सकता। संसदीय शासन की मूलभूत परंपरा के अनुसार प्रधानमंत्री लोक सभा का नेता होता है, परंतु डॉ. मनमोहन सिंह लोक सभा के सदस्य ही नहीं थे।

गठबंधन सरकारों के दौर में प्रधानमंत्री पद के समानांतर यू. पी. ए. के अध्यक्ष पद का भी विकास हुआ और यू. पी. ए. की अध्यक्षा सोनिया गाँधी थीं, जो कांग्रेस पार्टी की अध्यक्षा भी थीं। अतः राजनीतिक रूप में सोनिया गाँधी शक्तिशाली थी। जबकि संवैधानिक शक्तियाँ डॉ0 मनमोहन सिंह में निहित थे। संसदीय शासन सामूहिक उत्तरदायी के आधार पर कार्य करता हैं, परंतु गठबंधन सरकारों के दौर में मंत्रिमंडल के सदस्यों के द्वारा मंत्रिमंडल के निर्णय से सार्वजनिक रूप में असहमत व्यक्त किया गया। गठबंधन सरकारों के दौर में बाहर से समर्थन देने की परंपरा का भी विकास हुआ। परिणाम स्वरूप अनेक राजनीतिक दल सरकार और सत्ता की लाभ प्राप्त कर रहे थे, परंतु वे किसी के प्रति उत्तरदायी नहीं थे। क्योंकि बाहर से समर्थन देने वाले दलों की भागीदारी सरकार में नहीं होती है। ससंदीय शासन में मंत्रालयों के फेरबदल का अधिकार प्रधानमंत्री को होता है, परंतु गठबंधन के सहयोगियों के द्वारा मंत्रीपद प्राप्त करने के लिए प्रधानमंत्री के साथ पहले ही समझौता कर लिया जाता था। यह भी उल्लेखनीय है, कि प्रधानमंत्री देश की नीति का निर्माता भी होता है, परंतु गठबंधन सरकारों के दौर में न्यूनतम साझा कार्यक्रम का पहले ही निर्माण कर लिया जाता था, जिससे प्रधानमंत्री की नीति-िनर्माता के रूप में भूमिका कमजोर हो गयी। 16वीं लोक सभा में 1984 के बाद पहली बार किसी भी दल को संसद में स्पष्ट बहुमत प्राप्त हुआ। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी का शक्तिशाली प्रधानमंत्री के रूप में उभार हुआ।     


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