ईश्वरचन्द्र विद्यासागर | समाज सुधार आंदोलन

 ईश्वरचन्द्र विद्यासागर

• ये 19 वी सदी का एक महान- मानवतावादी विचारक थे। इन्होंने बंगला की नई वर्णमाला विकसित की। संस्कृत विद्यालय गैर ब्राह्मणों एवं महिलाओं के लिए खोल दिए। इनके प्रयास प्रयास से 25 बालिका विद्यालय स्थापित हुए। ये 1849 ई. में महिलाओं के लिए स्थापित बेथुन स्कूल के निरीक्षक के पद पर भी रहे। ईश्वरचंद्र विद्यासागरपर डेरेजियो और राजा राममोहन राय का गहरा प्रभाव था, वे देवेन्द्रनाथ ठाकुर द्वारा स्थापित ‘ तत्वबोधिनी सभा ‘ के सदस्य भी थे। यद्यपि कि ये भारत के आधुनिकीकरण के लिए बुद्धि आधारित धर्म निरपेक्ष शिक्षा को आवश्यक मानते थे, लेकिन ये मैकॉले के उस दावे से असहमत थे कि समस्त प्राचीन भारतीय मनीषा पूर्वाग्रहों का समुच्यय मात्र है। उन्होंने मैकॉले की तुलना उस तुर्की सुल्तान से किया, जो कुस्तुनतुनिया की पुस्तकों को यह कहकर जलाने का आदेश दिया था कि इन पुस्तकों में यदि वही शिक्षा है जो कुरान में है, तो यह पुस्तक ही निरर्थक हैं और यदि उससे इतर कोई बात इसमें कही गयी है, तो यह कुफ्र है। यानि कि विद्यासागर पूर्व और पश्चिम दोनों ही संस्कृतियों के श्रेष्ठ तत्वों के समायोजन से आधुनिक भारत के निमार्ण में विश्वास करते थे। वो कंपनी की सेवा में भी रहे, परंतु अनुचित सरकारी हस्तक्षेप से क्षुब्ध होकर उन्होंने नौकरी छोड़ दी।

• ईश्वरचन्द्र विद्यासागर ने विधवा विवाह से संबंधित अनेक कार्यक्रम बनाए। 1856 ई. में इनके प्रयास से ही विधवा पुनर्विवाह कानून पारित हुआ। 7 दिसंबर 1856 ई. को कलकत्ता में पहली बार इस कानून के तहत विधवा पुनर्विवाह हुआ। उन्होंने अपने पुत्र की शादी एक विधवा से करके समाज के सामने एक आदर्श रखा।

• 1859 ई. में वे अपने पुत्र सोमप्रकाश के माध्यम से महिला उद्धार से जुडे़ रहे। अपने इसी बंगाली साप्ताहिक पत्र में उन्होंने नील विद्रोह का समर्थन किया था।

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