मूल कर्तव्य (Fundamental duties) | Indian Polity Exam Notes
मूल कर्तव्य (Fundamental duties)
भारत के संविधान में मूल अधिकारों के साथ मूल कर्त्तव्यों को भी शामिल किया गया है। वस्तुतः अधिकार और कर्त्तव्य एक-दूसरे के पूरक हैं। अधिकारविहीन कर्त्तव्य निरर्थक होते हैं जबकि कर्त्तव्यविहीन अधिकार निरंकुशता पैदा करते हैं। यदि व्यक्ति को 'गरिमापूर्ण जीवन' का अधिकार प्राप्त है तो उसका कर्त्तव्य बनता है कि वह अन्य व्यक्तियों के गरिमापूर्ण जीवन के अधिकार का ख्याल भी रखे। यदि व्यक्ति को 'अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता' प्यारी है तो यह भी जरूरी है कि उसमें दूसरों की 'अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता' के प्रति धैर्य और सहिष्णुता विद्यमान हो।
रोचक बात है कि सामान्यतः विश्व के किसी भी लोकतांत्रिक देश के संविधान में नागरिकों के कर्तव्यों का उल्लेख नहीं किया गया है, सभी में सिर्फ मूल अधिकारों की घोषणा की गई है। अमेरिका का संविधान इसका प्रत्यक्ष उदाहरण है, जिसमें मूल अधिकार तो हैं किंतु कर्त्तव्य नहीं। ऑस्ट्रेलिया, फ्रांस, जर्मनी, कनाडा तथा ब्रिटेन जैसे देशों में भी मूल कर्त्तव्यों की ऐसी कोई सूची नहीं है। साम्यवादी (Communist) देशों में मूल कर्तव्यों की घोषणा करने की परंपरा दिखाई पड़ती है। भूतपूर्व सोवियत संघ का उदाहरण इस दृष्टि से महत्त्वपूर्ण है। उसके संविधान के सातवें अध्याय में बहुत से ऐसे कर्तव्यों की सूची प्रस्तुत की गई थी जिनका पालन करने की ज़िम्मेदारी वहाँ के नागरिकों पर थी जैसे- संविधान और कानूनों का पालन करना, अपने देश की सुरक्षा के लिये अनिवार्य सैनिक सेवा के लिये तैयार रहना, सार्वजनिक संपत्ति की सुरक्षा करना इत्यादि।
भारतीय संविधान में मूल कर्तव्यों का इतिहास
(History of Fundamental Duties in Indian Constitution)
भारतीय संविधान में मूल कर्त्तव्य शुरू से शामिल नहीं थे। श्रीमती इंदिरा गांधी के प्रधानमंत्रित्व काल में 1975 में जब आपातकाल की घोषणा की गई थी, तभी सरदार स्वर्ण सिंह के नेतृत्व में संविधान में उपयुक्त संशोधन सुझाने के लिये एक समिति का गठन किया गया था। इस समिति को संविधान के सभी उपबंधों का विस्तृत निरीक्षण करते हुए यह बताना था कि उसमें ऐसे कौन से संशोधन किये जाने चाहिये कि वह ज्यादा तर्कसंगत और व्यावहारिक हो सके। इस समिति की बहुत-सी अनुशंसाओं में एक यह भी थी कि संविधान में मूल अधिकारों के साथ-साथ मूल कर्त्तव्यों का समावेश होना चाहिये। समिति का तर्क यह था कि भारत में अधिकांश लोग, सिर्फ अधिकारों पर बल देते हैं। यह नहीं समझते कि हर अधिकार किसी कर्तव्य के सापेक्ष होता है।इस समिति की अनुशंसाओं के आधार पर 42वें संविधान संशोधन अधिनियम, 1976 के द्वारा संविधान में भाग 4' के पश्चात भाग 4 (क) अंत: स्थापित किया गया और उसके भीतर अनुच्छेद 51(क) को रखते हुए 10 मूल कर्त्तव्यों की सूची प्रस्तुत की गई। आगे चलकर,86 वे संविधान संशोधन अधिनियम 2002 के माध्यम से एक और मूल कर्तव्य जोडा़ गया जो अनुच्छेद 21(क) में दिये गए प्राथमिक शिक्षा के अधिकार से सुसंगत था। अनुच्छेद 21(क) में यह गारंटी दी गई थी कि 6-14 वर्ष की आयु के प्रत्येक बच्चे को शिक्षा प्राप्त करने का मूल अधिकार होगा। इसी से सुसंगत 11वें मूल कर्त्तव्य द्वारा 6-14 वर्ष की आयु के बच्चों के माता-पिताओं या संरक्षको पर यह कर्तव्य आरोपित किया गया है कि वे स्वयं पर आश्रित बच्चों को शिक्षा प्राप्त करने का अवसर प्रदान करेंगे।
मूल कर्तव्यों की सूची (List of Fundamental duties)
वर्तमान में संविधान के भाग 4(क) तथा अनुच्छेद 51(क) के अनुसार भारत के प्रत्येक नागरिक के कुल 11 मूल कर्तव्य हैं। इसके अनुसार, भारत के प्रत्येक नागरिक का यह कर्त्तव्य होगा कि वह -(क) संविधान का पालन करे और उसके आदर्शों, संस्थाओं, राष्ट्र ध्वज और राष्ट्रगान (National Anthem) का आदर करे।
(ख) स्वतन्त्रता के लिये हमारे राष्ट्रीय आन्दोलन को प्रेरित करने वाले उच्च आदर्शों को हृदय में संजोए रखे और उनका पालन करे।
(ग) भारत की प्रभुता (Sovereignty), एकता (Unity) और अखण्डता (Integrity) की रक्षा करे और उसे अक्षुण्ण रखे।
(घ) देश की रक्षा करे और आह्वान किये जाने पर राष्ट्र की सेवा करे।
(ङ) भारत के सभी लोगों में समरसता (Harmony) और समान भ्रातृत्व (Common brotherhood) की भावना का निर्माण करे जो धर्म, भाषा और प्रदेश या वर्ग पर आधारित सभी भेदभावों से परे हो। ऐसी प्रथाओं का त्याग करे जो स्त्रियों के सम्मान के विरुद्ध हैं।
(च) हमारी सामासिक संस्कृति (Composite culture) की गौरवशाली परम्परा का महत्त्व समझे और उसका परिरक्षण करे।
(छ) प्राकृतिक पर्यावरण की, जिसके अन्तर्गत वन, झील, नदी और वन्य जीव हैं, रक्षा करे और उसका संवर्द्धन करे तथा प्राणिमात्र के प्रति दयाभाव रखे।
(ज) वैज्ञानिक दृष्टिकोण (Scientific temper), मानववाद (Humanism) और ज्ञानार्जन तथा सुधार की भावना का विकास करे।
(झ) सार्वजनिक सम्पत्ति को सुरक्षित रखे और हिंसा से दूर रहे।
(ञ) व्यक्तिगत और सामूहिक गतिविधियों के सभी क्षेत्रों में उत्कर्ष की ओर बढ़ने का सतत प्रयास करे जिससे राष्ट्र निरन्तर बढ़ते हुए प्रयत्न और उपलब्धि की नई ऊँचाइयों को छू ले।
(ट) जो माता-पिता या संरक्षक हों, वे, छ: से चौदह वर्ष के बीच की आयु के, यथास्थिति, अपने बच्चे अथवा प्रतिपाल्य (संरक्षित/ ward) को शिक्षा प्राप्त करने के अवसर प्रदान करेगा।